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Showing posts from April, 2023

दूधवाला । आज के जमाने मे भी गांव वाले अपनी भैंसों का दूध, घर 2 जाकर बेचते हैं। पुराने जमाने में साईकिल पर जाते थे, आज कल मोटरसाइकिल पर। आप देखिए इनके साफ सुथरे सफेद कपड़े, रोबदार साफा,मूछें ,साफ दूध के बर्तन,गहने। इनसे दूध खरीदने की बात ही कुछ और है।

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राधेश्याम मेट,नानी चिरई, कच्छ गुजरात, रेलवे। मैंने जाना कि पद और परिस्थिति बदलने से कयी बार व्यक्ति का काम करने का तरीका बदल जाता है। राधेश्याम मेरे अधीन एक गैंगमैन था। रेलवे में। ट्रेक मेनटेनेंस में। उसका काम साधारण था। कीमैन में प्रमोट होने पर कुछ बेहतर हुआ।मेट के पद पर प्रमोट होने पर बहुत ही अच्छा हो गया। चिरई इलाके की मिट्टी कमजोर थी इस कारण रेल लाईन बार बार बैठ जाती थी।इलाके की सारी गैंगों के गैंगमैन बुलाने पड़ते थे ठीक करने के लिए। राधेश्याम ने काफी मेहनत करी और हमारे मिले जुले प्रयास से चिरई वाला इलाका काफी बेहतर हो गया और चिरई की गैंग बाहर दूसरों के इलाके में काम करने जाने लगी। उसने एक हिरन बच्चे के समान पाल रखा था। एक बार वह खो गया। मीलों दूर तक रन में ढूंढा। नहीं मिला। कयी दिनों तक उसने खाना नहीं खाया था। उसके पहले उस इलाके में मेट महावीर था। बहुत अच्छा इंसान और मेहनती ईमानदार,पर लेबर उससे डरती नहीं थी।

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कैक्टस।

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घर में सौतन।

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डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।

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बचपन।

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भचाऊ कच्छ गुजरात। करीबन् 40 साल पहले। अग्रवाल जी मजिस्ट्रेट बन कर आए। पत्नी उनकी पहचान के रेलवे ट्रेन गार्ड की बेटी थी।छोटी जगह,जान पहचान,आना जाना चालू हुआ। कुछ महीनों बाद अग्रवाल जी ने मेरी पत्नी रोहिणी से रिक्वेस्ट की कि उनकी करीबन 4 साल की बेटी को कुछ घंटे सम्हालें और हमारी बेटी के साथ खेलने दें। खाना पैक कर साथ दे जाते थे। स्कूटर पर कोर्ट जाने से पहले छोड़ जाते और शाम को ले जाते। नाम शायद श्वेता था।  बहुत प्यारी बच्ची थी। दिन भर हमारे घर खेलती, आराम भी करती। बाद में रोहिणी ने बताया कि श्वेता की मां उसे घंटों बाथरूम में बंद कर दिया करती थी। रोहिणी ने उसे प्यार दिया। एक मजिस्ट्रेट अपनी खराब पत्नी के सामने लाचार था। कुछ महीनों बाद उनका तबादला हो गया। © किरीटनेचुरल 10-4-2023

शुक्ला जी।

शुक्ला जी रेलवे में मेरे अफसर थे जब मैं सराधना था। बहुत दुबले पतले,अच्छे स्वभाव के, मेहनती और प्रेरित करने वाले। एक बार हमें नयी लाईन ठोकर पर ढे़र सारी मिट्टी डालवानी थी।तगारी से, कच्ची लेबर से।कयी महीनों से काम चालू नहीं हो पा रहा था। साइडिंग बन्द पड़ी थी। उन्होंने मुझसे बात की कितने क्यूबिक मीटर मिट्टी डालनी है और एक आदमी कितनी रोज डालेगा।कहा 2 लेबर लगा दो और उनको 4 क्यूबिक मी काम दे दो। करीब रोज़ एक बार चैक करो। मेरा मानना था 2महीने लगेंगे। असम्भव सा काम था।15 फीट ऊंचा था। आश्चर्य की बात है कि 1.5 महीने में हो गया। शुक्ला जी का कहना था कि डरो मत प्रयास करो।

बजरंग गढ़। कयी बरसों तक, महीने में एक बार (कमसे कम), बजरंग गढ़, अजमेर जाता था। मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। मुश्किल सीढियां हैं करीबन् 250। पर पहुंचने पर मन शांत होता था।कम भीड़। सौम्य वातावरण। अच्छे पुजारी। सुन्दर मूर्ति। पुजारी के रहने की जगह बहुत ही साधारण। रास्ते में दुकान से अच्छे पेड़े,लाल गुलाब की ताज़ा माला मंदिर के पास से, कभी नारियल और कभी फल भी, साथ में ले जाता था। पहाड़ पर से आनासागर झील का सुन्दर नजारा भी दिखाई देता है। परीक्षा के दिनों में कयी विद्यार्थी भी दिख जाते थे। उम्र के साथ सीढियां चढ़ना मुश्किल होने पर जाना कम होता गया। एक दो बार हनुमान जयंती पर भी गया। एक बार दीवाली के दिन जाकर फोटो खींच कर भी लाया था। अच्छी यादें।

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Life without you, Rohini.

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