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मेरा घर।
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घर। एक छत सर पर।चार दिवारें। एक पता-खत के लिए,आधार कार्ड के लिए। बुरे वक्त को गुज़ारने की जगह, बहुत जरुरी है जीवन मैं। घर छोटा हो सकता है,दीवारें बैरंग, फर्श टूटा फूटा,खिडक़ी के काँच क्रेक,दरवाजे कमजोर।पानी सप्लाई कभी हाँ कभी ना।पुरानी टूटी-फूटी खाट।बैठने के लिए सरकंडे की पुरानी मुढिया। रसोई मैं पुराना प्रेशर स्टोव,कुछ पुराने बरतन।राशन के लिए एक टिन कनस्तर,सब चलेगा। पर,इस आश्रय मैं आप अपना बुरा वक्त गुजार सकते हैं।रूखी-सूखी कच्ची-पक्की पकाकर खा सकते हैं।पुरानी लूंगी में बिना गद्दे के चैन की नींद सो सकते हैं। बे वक्त जी भर के रो सकते हैं। अपनी गलतियों की समीक्षा कर सकते हैं। अलयूमिय की पतेली में बनाई,बिना छानी, काली चाय,काँच के गिलास में पी सकते हैं। पारले जी बिसकुट चाय मैं डुबोकर खा सकते हैं। खिचडी पका कर खाकर पेट की भूख मिटा सकते हैं।ढेरों विल्स सिगरेट पी सकते हैं। कागजों पर डूडल्स बना सकते हैं। अपने घर की बात ही कुछ और है,ऐसा यात्रा के बाद लौट कर,हर बार हम कहते ही हैं। अपने घर मे बैठकर बारिश में गरमा - गरम पकोड़े खाने का मज़ा ही कुछ और है। दीपावली पर ,अपने घर पर दीपक स