डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।

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जामुन ।करीबन् 25 साल पहले रेलवे में बाढ़ में लाईन बहुत खराब हो गई थी इसलिए मुझे भी गोवर्धन स्टेशन, मथुरा के पास, 17 दिन वेटिंग हाल में रहना पड़ा। काम करना पड़ा।आसपास जंगल में जामुन के कई पेड़ थे। ईलाके में हर गड़रिया एक प्लास्टिक थैली में जामुन लिए घूमता रहता था और खाता रहता था। एक दिन हमारी मेटेरियल ट्रेन मथुरा के बाहर खड़ी हो गई। ड्राईवर जानकार था बोला घंटों लगेंगे , आईये पास के पेड़ की छांव में बैठते हैं। वह पेड़ छोटे मीठे जामुन से लदा था। उसने उसे झझकोरा तो काफी पके जामुन निचे गिरे। मैंने जीवन में पहली बार इतने मीठे और इतने सारे जामुन एक बार में खाये। आज जामुन खाते समय याद आ गई। उस समय मेरा हेडक्वार्टर अजमेर था। गिलहरी और तोते भी थे और भरपेट जामुन खा रहे थे।

झिझक के पल।

मैं बुद्ध न बन सका । मैंने विवाह किया, पत्नी की देखभाल और साथ निभाने की कसमें खाई। जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी। कोशिश रही कि पूरी ईमानदारी से नौकरी करूं। इसी में सारा जीवन निकल गया। कोई दुख नहीं है।