बचपन।

भचाऊ कच्छ गुजरात। करीबन् 40 साल पहले। अग्रवाल जी मजिस्ट्रेट बन कर आए। पत्नी उनकी पहचान के रेलवे ट्रेन गार्ड की बेटी थी।छोटी जगह,जान पहचान,आना जाना चालू हुआ। कुछ महीनों बाद अग्रवाल जी ने मेरी पत्नी रोहिणी से रिक्वेस्ट की कि उनकी करीबन 4 साल की बेटी को कुछ घंटे सम्हालें और हमारी बेटी के साथ खेलने दें। खाना पैक कर साथ दे जाते थे। स्कूटर पर कोर्ट जाने से पहले छोड़ जाते और शाम को ले जाते। नाम शायद श्वेता था। 

बहुत प्यारी बच्ची थी। दिन भर हमारे घर खेलती, आराम भी करती।
बाद में रोहिणी ने बताया कि श्वेता की मां उसे घंटों बाथरूम में बंद कर दिया करती थी।
रोहिणी ने उसे प्यार दिया।
एक मजिस्ट्रेट अपनी खराब पत्नी के सामने लाचार था।
कुछ महीनों बाद उनका तबादला हो गया।

© किरीटनेचुरल
10-4-2023


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जामुन ।करीबन् 25 साल पहले रेलवे में बाढ़ में लाईन बहुत खराब हो गई थी इसलिए मुझे भी गोवर्धन स्टेशन, मथुरा के पास, 17 दिन वेटिंग हाल में रहना पड़ा। काम करना पड़ा।आसपास जंगल में जामुन के कई पेड़ थे। ईलाके में हर गड़रिया एक प्लास्टिक थैली में जामुन लिए घूमता रहता था और खाता रहता था। एक दिन हमारी मेटेरियल ट्रेन मथुरा के बाहर खड़ी हो गई। ड्राईवर जानकार था बोला घंटों लगेंगे , आईये पास के पेड़ की छांव में बैठते हैं। वह पेड़ छोटे मीठे जामुन से लदा था। उसने उसे झझकोरा तो काफी पके जामुन निचे गिरे। मैंने जीवन में पहली बार इतने मीठे और इतने सारे जामुन एक बार में खाये। आज जामुन खाते समय याद आ गई। उस समय मेरा हेडक्वार्टर अजमेर था। गिलहरी और तोते भी थे और भरपेट जामुन खा रहे थे।

झिझक के पल।

मैं बुद्ध न बन सका । मैंने विवाह किया, पत्नी की देखभाल और साथ निभाने की कसमें खाई। जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी। कोशिश रही कि पूरी ईमानदारी से नौकरी करूं। इसी में सारा जीवन निकल गया। कोई दुख नहीं है।