बजरंग गढ़। कयी बरसों तक, महीने में एक बार (कमसे कम), बजरंग गढ़, अजमेर जाता था। मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। मुश्किल सीढियां हैं करीबन् 250। पर पहुंचने पर मन शांत होता था।कम भीड़। सौम्य वातावरण। अच्छे पुजारी। सुन्दर मूर्ति। पुजारी के रहने की जगह बहुत ही साधारण। रास्ते में दुकान से अच्छे पेड़े,लाल गुलाब की ताज़ा माला मंदिर के पास से, कभी नारियल और कभी फल भी, साथ में ले जाता था। पहाड़ पर से आनासागर झील का सुन्दर नजारा भी दिखाई देता है। परीक्षा के दिनों में कयी विद्यार्थी भी दिख जाते थे। उम्र के साथ सीढियां चढ़ना मुश्किल होने पर जाना कम होता गया। एक दो बार हनुमान जयंती पर भी गया। एक बार दीवाली के दिन जाकर फोटो खींच कर भी लाया था। अच्छी यादें।

Comments

  1. आनासागर तो कई बार गया, पर बजरंगगढ़ नहीं। आपने बताया, धन्यवाद। कभी जाना होगा या नहीं, कह नहीं सकता।
    आपकी इस पोस्ट से मुझे रतलाम मण्डल का मेरा स्टेशन बजरंगगढ़ याद हो आया। उसका कोड था BJG. शायद हनुमान जी का मंदिर भी था आसपास।

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झिझक के पल।

जामुन ।करीबन् 25 साल पहले रेलवे में बाढ़ में लाईन बहुत खराब हो गई थी इसलिए मुझे भी गोवर्धन स्टेशन, मथुरा के पास, 17 दिन वेटिंग हाल में रहना पड़ा। काम करना पड़ा।आसपास जंगल में जामुन के कई पेड़ थे। ईलाके में हर गड़रिया एक प्लास्टिक थैली में जामुन लिए घूमता रहता था और खाता रहता था। एक दिन हमारी मेटेरियल ट्रेन मथुरा के बाहर खड़ी हो गई। ड्राईवर जानकार था बोला घंटों लगेंगे , आईये पास के पेड़ की छांव में बैठते हैं। वह पेड़ छोटे मीठे जामुन से लदा था। उसने उसे झझकोरा तो काफी पके जामुन निचे गिरे। मैंने जीवन में पहली बार इतने मीठे और इतने सारे जामुन एक बार में खाये। आज जामुन खाते समय याद आ गई। उस समय मेरा हेडक्वार्टर अजमेर था। गिलहरी और तोते भी थे और भरपेट जामुन खा रहे थे।