मैं बुद्ध न बन सका । मैंने विवाह किया, पत्नी की देखभाल और साथ निभाने की कसमें खाई। जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी। कोशिश रही कि पूरी ईमानदारी से नौकरी करूं। इसी में सारा जीवन निकल गया। कोई दुख नहीं है।
आप विशिष्ट हैं. बहुत कम ही लोग होते हैं जिनको जीवन से कोई शिकायत, दुख या पश्चाताप न हो. सामन्यतः लोग अच्छा किए का क्रेडिट लेते हैं और गलत के लिए किसी और को या देव को कोसते हैं.
“झिझक के पल” के बारे में मुझे अगस्त 1979 में ठीक से पता चला।मैं उस समय भचाऊ ,कच्छ, गुजरात में नौकरी पर था। जुनियर ईन्जीनियर ट्रेक। 11-8-1979 को भचाऊ से करीबन 70 कि.मी.दूर मोरबी में मच्छू बा...
आप विशिष्ट हैं. बहुत कम ही लोग होते हैं जिनको जीवन से कोई शिकायत, दुख या पश्चाताप न हो.
ReplyDeleteसामन्यतः लोग अच्छा किए का क्रेडिट लेते हैं और गलत के लिए किसी और को या देव को कोसते हैं.