यादें अच्छी। भचाऊ,कच्छ, गुजरात,1980 के आसपास। थोड़ा बड़ा गांव। रेल वे कोलोनी जीवन। एक लेबर/गैंगमैन मुर्गेशन ट्रांसफर होकर आया। बहुत बदमाश था। नौकरी में कोई रूचि नहीं थी। उसकी पत्नी इडली-सांभर बहुत अच्छा बना कर बेचती थी। ओर्डर देने पर और भी अच्छा, सफाई से बना कर भेजती थी। हम ने कई बार खाया, खासकर ईतवार को। भचाऊ गांव के हमारे प्रिय मित्र डा.आचार्य को भी खिलाया था। आज बेटी के हाथ की स्वादिष्ट ईडली खा कर याद आ गई।

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जामुन ।करीबन् 25 साल पहले रेलवे में बाढ़ में लाईन बहुत खराब हो गई थी इसलिए मुझे भी गोवर्धन स्टेशन, मथुरा के पास, 17 दिन वेटिंग हाल में रहना पड़ा। काम करना पड़ा।आसपास जंगल में जामुन के कई पेड़ थे। ईलाके में हर गड़रिया एक प्लास्टिक थैली में जामुन लिए घूमता रहता था और खाता रहता था। एक दिन हमारी मेटेरियल ट्रेन मथुरा के बाहर खड़ी हो गई। ड्राईवर जानकार था बोला घंटों लगेंगे , आईये पास के पेड़ की छांव में बैठते हैं। वह पेड़ छोटे मीठे जामुन से लदा था। उसने उसे झझकोरा तो काफी पके जामुन निचे गिरे। मैंने जीवन में पहली बार इतने मीठे और इतने सारे जामुन एक बार में खाये। आज जामुन खाते समय याद आ गई। उस समय मेरा हेडक्वार्टर अजमेर था। गिलहरी और तोते भी थे और भरपेट जामुन खा रहे थे।

झिझक के पल।

मैं बुद्ध न बन सका । मैंने विवाह किया, पत्नी की देखभाल और साथ निभाने की कसमें खाई। जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी। कोशिश रही कि पूरी ईमानदारी से नौकरी करूं। इसी में सारा जीवन निकल गया। कोई दुख नहीं है।