अच्छे साथी के जाने के बाद जीवन कुछ ऐसा हो जाता है मानों नौका तो डूब गई और हम अथा सागर में सिर्फ "लाइफबॉय"के सहारे तैर कर जी रहे हैं। हरियाली और किनारा दूर है और साथ देने के लिए एक समुद्री पक्षी कहीं से आ गया हो।
“झिझक के पल” के बारे में मुझे अगस्त 1979 में ठीक से पता चला।मैं उस समय भचाऊ ,कच्छ, गुजरात में नौकरी पर था। जुनियर ईन्जीनियर ट्रेक। 11-8-1979 को भचाऊ से करीबन 70 कि.मी.दूर मोरबी में मच्छू बा...
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