ताज़ा सब्जी खरीदते समय मेरे मन में हमेशा विचार रहता था कि रोहिणी पका कर खिलाएगी तो कैसा स्वाद आएगा। वह खाना बनाने में माहिर थी।कंकोड़े की सब्जी हो या फिर मूली के परांठे।
“झिझक के पल” के बारे में मुझे अगस्त 1979 में ठीक से पता चला।मैं उस समय भचाऊ ,कच्छ, गुजरात में नौकरी पर था। जुनियर ईन्जीनियर ट्रेक। 11-8-1979 को भचाऊ से करीबन 70 कि.मी.दूर मोरबी में मच्छू बा...
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