अच्छे अफसर,अच्छी सीख।

अच्छे अफसर।अच्छी सीख।

मैंने अक्सर बैंक मेनेजर को लम्बे समय तक आजकल खाली बैठे देखा है। मुझे अपने पुराने अच्छे अफसर याद आ गये जो खुद आपके साथ एक टीम मेम्बर की तरह काम करते थे।

पहली पक्की नौकरी,बजाज सिमेंट उदयपुर ,सुपरवाईजर, तनख्वाह 250 मासिक,आने जाने के लिए बस ,वर्ष 1971।

जी .एस .एस .शंकर साहेब,ऐक्सीक्यूटिव इंजिनियर।असिस्टेंट इंजीनियर मेहता जी (स्मार्ट, रीजेंट किंग सिगरेट लगातार पीने वाले) ,सब साथ बैठकर सफेद कागज पर ऐस्टीमेट बनाते और आपस मैं कागज बांटकर उसपर सादे गुणा भाग जोड़ बाकी  करने में मदद करते।केल्क्यूलेटर तो था नहीं।( लाॅग टेबल अवश्य थी)। छोटे एस्टीमेट बनाने में काफी समय लगता था। शंकर सर भी हमसे कुछ पेपर लेकर गुणा भाग करते और हमारी मदद करते।

उनसे सीखा कि खाने की चीज मंगाओ तो एन+1, खाने वालों से हमेशा एक ज्यादा।अचानक कोई आ जाए तो वह भी खा ले।मेरे अलावा और भी एक सुपरवाईजर था,साऊथ का, नाम याद नहीं आ रहा।सब अच्छे लोग थे। करीब 1.5 वर्ष अच्छा निकला।

रेलवे, रानी स्टेशन के पास गहरी छनाई का काम 45दिन सुपरवाईज किया।1976.हीरानंदानी जी पी.डब्लूआई.थे।जौहर साहेब ए.पी.डब्लूआई।

एक बार हीरा साहेब ने सीख दी कि काम के बारे में छत पर चढ़कर चिल्लाना जरूरी है कि मैंने यह किया।

बेहतर तब होता है जब आप पूरा काम करें और पूरा बताऐं। दूसरे वह होते हैं जो आधा काम करते हैं और पूरा बताते हैं। तीसरे वह होते हैं जो कुछ नहीं करते और पूरा क्रेडिट लेते हैं।पर हर हाल में चिल्लाना जरूरी है। तुम्हारी तरह चुपचाप काम करनेवाले असफल होते हैं। ईस सीख का उपयोग मैंने जब भी किया, मुझे फायदा हुआ।

सराधना, (अजमेर के पास), नौकरी थी,रेलवे में ए.पी.डब्लूआई.की। शुक्ला जी हमारे असिस्टेंट इंजीनियर। दुबले- पतले। काम में दक्ष। खुद कितना भी डांट ले पर ऊपरवालों से और सिस्टम की सजा से(गलती होने पर) जी जान से बचाते थे।साईट पर आकर मुश्किल काम करने में पूरी मदद करते।काम के लिए सही तरीके से मोटीवेट करते।

एक साईट पर काफी सारी मिट्टी डालनी थी।उन दिनों डिपार्टमेंटल लेबर से काम कराते थे। काम कई कारणों से टल रहा था। उन्होंने पूछा कितने क्यूबिक मीटर मिट्टी डालनी है व कितनी लेबर लगेगी?दो आदमी एक दिन में औसतन कितनी मिट्टी डाल देंगे। उन्होंने राय दी कि छांट कर दो आदमी लगा दो और उनको चार क्यूबिक की जगह दो का रोज का टारगेट दो।उनको रोज एक बार चैक करो।सच मानिए मैंने जो टाईम लिमिट सोची थी उससे आधे में काम हो गया। शुक्ला जी ने फिर चर्चा की और मेरी तारीफ की।

उनका कहना था कि बड़े काम को छोटे स्तरपर लीक से हटकर पूरा किया जा सकता है।

और भी कई अफसरों ने अलग 2 समय पर अच्छी सीख दी व उन सब को मैं आज तक नहीं भूला।

_किरीटनेच्युरल।

   5-8-2018





Comments

Popular posts from this blog

झिझक के पल।

जामुन ।करीबन् 25 साल पहले रेलवे में बाढ़ में लाईन बहुत खराब हो गई थी इसलिए मुझे भी गोवर्धन स्टेशन, मथुरा के पास, 17 दिन वेटिंग हाल में रहना पड़ा। काम करना पड़ा।आसपास जंगल में जामुन के कई पेड़ थे। ईलाके में हर गड़रिया एक प्लास्टिक थैली में जामुन लिए घूमता रहता था और खाता रहता था। एक दिन हमारी मेटेरियल ट्रेन मथुरा के बाहर खड़ी हो गई। ड्राईवर जानकार था बोला घंटों लगेंगे , आईये पास के पेड़ की छांव में बैठते हैं। वह पेड़ छोटे मीठे जामुन से लदा था। उसने उसे झझकोरा तो काफी पके जामुन निचे गिरे। मैंने जीवन में पहली बार इतने मीठे और इतने सारे जामुन एक बार में खाये। आज जामुन खाते समय याद आ गई। उस समय मेरा हेडक्वार्टर अजमेर था। गिलहरी और तोते भी थे और भरपेट जामुन खा रहे थे।

मैं बुद्ध न बन सका । मैंने विवाह किया, पत्नी की देखभाल और साथ निभाने की कसमें खाई। जीवन यापन के लिए नौकरी करनी पड़ी। कोशिश रही कि पूरी ईमानदारी से नौकरी करूं। इसी में सारा जीवन निकल गया। कोई दुख नहीं है।