गरीब की खुशियों को भी नजर लगती है।

मैंने,गरीब की छोटी -2 खुशीयों को भी नजर लगते, करीब से देखा है।अतीत के उस घटनाक्रम में मैं भी एक पात्र था।

करीब 15 साल पुरानी घटना है।अजमेर रेलवे स्टेशन।प्लेटफार्म एक।अहमदाबाद सिरा।दोपहर 5 का समय।अजमेर से मुम्बई जाने वाली ट्रेन का रैक तैयार खडा़ था।डीजल इंजन आगे अलग थोड़ी दूर तैयार खडा़ था,चालू, धड़धड़ाता हुआ।शन्टर-ड्राईवर व असिस्टेंट प्लेटफार्म बैंच पर आराम कर रहे थे।कम ट्रेनो की आवाजाही का समय था।

कुछ गरीब बड़े बच्चे प्लेटफार्म पर मस्ती कर रहे थे।रेडियो पर जोर से बज रहे गाने पर डांस कर रहे थे।अतिसुन्दर।

मैं रेलवे में सीनीयर सेक्शन ईन्जीनियर के पद पर था।मेरे अफसर सीनीयर डी.ई.एन.ट्रेन से आबूरोड तक इंसपेक्शन पर जाने वाले थे अतः मैं उन्हें छोड़ने प्लेटफार्म पर आ रहा था।जल्दी में था।सेकन्ड ए.सी.कोच जयपुर सिरे पर पीछे लगता था,वहां तक पहुंचना था।

अचानक डांस करनेवाले एक लड़के का पाँव फिसला व वह फिसलकर करीब दस फुट दूर,प्लेटफार्म व धड़धड़ाते ईंजन के पहियों के बीच, बुरी तरह टकराता हुआ,गिरा।उसके शरीर पर कई ज़गह चोटें आई।अन्दर फंस गया।

उसके एकदम पास मैं ही था अतः तुरन्त झुककर मैंने उसे अपने हाथ का सहारा दिया व उसे बाहर निकाला।वह अत्यधिक घबराया हुआ था।जगह-2 कालिख लगी थी।

ड्राईवर व असिस्टेंट जो सारी घटना देख ही रहे थे,तुरन्त दौड़ कर आए व उसे सम्हाला।मैं ने उन्हें याद दिलाया कि इसे तुरन्त पास वाली रेलवे डिसपेंसरी में ले जाएं,अन्दरुनी चोटें लगी हैं।

क्योंकि मैं जल्दी में था,मुझे मेरे अफसर को ट्रेन पर मिलना था अतः मैं रुक नहीं पाया।

मुझे आज भी इस बात का दुख है।उस जमाने में मोबाईल फोन भी नहीं था सूचित करने के लिए।

पर हां ऐसा लगा मानो गरीब की खुशी को किसी की नज़र लग गई।

किरीटनेच्युरल।

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डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।