बजरंग गढ़। कयी बरसों तक, महीने में एक बार (कमसे कम), बजरंग गढ़, अजमेर जाता था। मंदिर पहाड़ी पर स्थित है। मुश्किल सीढियां हैं करीबन् 250। पर पहुंचने पर मन शांत होता था।कम भीड़। सौम्य वातावरण। अच्छे पुजारी। सुन्दर मूर्ति। पुजारी के रहने की जगह बहुत ही साधारण। रास्ते में दुकान से अच्छे पेड़े,लाल गुलाब की ताज़ा माला मंदिर के पास से, कभी नारियल और कभी फल भी, साथ में ले जाता था। पहाड़ पर से आनासागर झील का सुन्दर नजारा भी दिखाई देता है। परीक्षा के दिनों में कयी विद्यार्थी भी दिख जाते थे। उम्र के साथ सीढियां चढ़ना मुश्किल होने पर जाना कम होता गया। एक दो बार हनुमान जयंती पर भी गया। एक बार दीवाली के दिन जाकर फोटो खींच कर भी लाया था। अच्छी यादें।

Comments

  1. आनासागर तो कई बार गया, पर बजरंगगढ़ नहीं। आपने बताया, धन्यवाद। कभी जाना होगा या नहीं, कह नहीं सकता।
    आपकी इस पोस्ट से मुझे रतलाम मण्डल का मेरा स्टेशन बजरंगगढ़ याद हो आया। उसका कोड था BJG. शायद हनुमान जी का मंदिर भी था आसपास।

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झिझक के पल।

डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।