राधेश्याम मेट,नानी चिरई, कच्छ गुजरात, रेलवे। मैंने जाना कि पद और परिस्थिति बदलने से कयी बार व्यक्ति का काम करने का तरीका बदल जाता है। राधेश्याम मेरे अधीन एक गैंगमैन था। रेलवे में। ट्रेक मेनटेनेंस में। उसका काम साधारण था। कीमैन में प्रमोट होने पर कुछ बेहतर हुआ।मेट के पद पर प्रमोट होने पर बहुत ही अच्छा हो गया। चिरई इलाके की मिट्टी कमजोर थी इस कारण रेल लाईन बार बार बैठ जाती थी।इलाके की सारी गैंगों के गैंगमैन बुलाने पड़ते थे ठीक करने के लिए। राधेश्याम ने काफी मेहनत करी और हमारे मिले जुले प्रयास से चिरई वाला इलाका काफी बेहतर हो गया और चिरई की गैंग बाहर दूसरों के इलाके में काम करने जाने लगी। उसने एक हिरन बच्चे के समान पाल रखा था। एक बार वह खो गया। मीलों दूर तक रन में ढूंढा। नहीं मिला। कयी दिनों तक उसने खाना नहीं खाया था। उसके पहले उस इलाके में मेट महावीर था। बहुत अच्छा इंसान और मेहनती ईमानदार,पर लेबर उससे डरती नहीं थी।

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झिझक के पल।

डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।