राधेश्याम मेट,नानी चिरई, कच्छ गुजरात, रेलवे। मैंने जाना कि पद और परिस्थिति बदलने से कयी बार व्यक्ति का काम करने का तरीका बदल जाता है। राधेश्याम मेरे अधीन एक गैंगमैन था। रेलवे में। ट्रेक मेनटेनेंस में। उसका काम साधारण था। कीमैन में प्रमोट होने पर कुछ बेहतर हुआ।मेट के पद पर प्रमोट होने पर बहुत ही अच्छा हो गया। चिरई इलाके की मिट्टी कमजोर थी इस कारण रेल लाईन बार बार बैठ जाती थी।इलाके की सारी गैंगों के गैंगमैन बुलाने पड़ते थे ठीक करने के लिए। राधेश्याम ने काफी मेहनत करी और हमारे मिले जुले प्रयास से चिरई वाला इलाका काफी बेहतर हो गया और चिरई की गैंग बाहर दूसरों के इलाके में काम करने जाने लगी। उसने एक हिरन बच्चे के समान पाल रखा था। एक बार वह खो गया। मीलों दूर तक रन में ढूंढा। नहीं मिला। कयी दिनों तक उसने खाना नहीं खाया था। उसके पहले उस इलाके में मेट महावीर था। बहुत अच्छा इंसान और मेहनती ईमानदार,पर लेबर उससे डरती नहीं थी।
“झिझक के पल” के बारे में मुझे अगस्त 1979 में ठीक से पता चला।मैं उस समय भचाऊ ,कच्छ, गुजरात में नौकरी पर था। जुनियर ईन्जीनियर ट्रेक। 11-8-1979 को भचाऊ से करीबन 70 कि.मी.दूर मोरबी में मच्छू बा...
Comments
Post a Comment