चूं चूं करती आई चिड़िया.. बहुत पुराना गीत याद आ रहा है। जी हां चिड़िया का चहकना,उछल कूद करना, पानी के बर्तन में नहाना, बाजरा या पके चावल,शौक से खाना सब याद आता है। मैं तेज गर्मी में दोपहर को याद करके उसके बर्तन में पानी बदलता था,ठंडा पानी भरता था। यह सब अजमेर घर की अच्छी यादें हैं।

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झिझक के पल।

डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।