जीवन/युद्ध में जाने के लिए तैयार होते सैनिक। ऐसा लगता है इन बच्चों को स्केटिंग करने की तैयारी करते देख कर। महाराणा प्रताप का युद्ध का पहनावा,(धातु का बना,) याद आ गया जो मैंने उदयपुर महल में देखा था। इन बच्चों की जिज्ञासा, हिम्मत, खुशी देख कर खुशी होती है। सिर्फ 4 साल के बच्चे भी स्केटिंग सीख लेते हैं। और हमने कंचे खेल कर समय गुजारा था बचपन में।

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झिझक के पल।

डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।