प्यारी भिन्डी।

प्यारी भिन्डी।

ईतने प्यार व दुलार से शायद ही कोई सब्जी बनाई जाती है जितने जतन से भिन्डी।

जी हां। दुकान से भी भिन्डी एक 2 छूकर ,नरम देखकर खरीदी जाती है।घर पर साफ बहते पानी में उसे नहलाया जाता है। फिर उसे अखबार पर हवा में फैला कर सुखाया जाता है।वह थक गई होती है उसे आराम करने दिया जाता है। कुछ समय बाद एक 2 भिन्डी को साफ कपड़े से प्यार से पोंछा जाता है।ईतनी देखभाल तो पत्निजी अपने हाथ की नहीं करती जितनी ईस “लेडिफिन्गर” की। इस की नाज़ुकता को व सुंदरता को बनाऐ रखने के लिए कम मसाले डालती हैं और वह भी धीमी आंच पर भुनने के बाद। जिस से इसका रंग वैसा ही रहे ।

इस के गुण हैं अनेक। आंखों की रौशनी, किडनी,डायाबिटीज,केंसर,कब्ज,त्वचा की चमक, में फायदेमंद, विटामिन ,मिनरल,फाइबर से भरपूर।हर मौसम में मिले।सबको भाए।

यही सब्जी पांच कोंण (पेंटागन) सतह वाली होती है, बाकी सब गोल होती है।

भिन्डी की फ्राईड सब्जी खाऐं...पर प्यार से,स्वाद लेकर।रोटी,परांठा,या पुरी के साथ। सिर्फ सादे चावल या दाल चावल के साथ।

जैसे कि नारी के कई रुप होते हैं ऐसे इस को भी  तेज मसालेदार ,या भरवां या ग्रेवीवाली भी बनाया जाता है।

हम यात्रा में भी इसे साथ लेजाना पसंद करते हैं क्योंकि इस पर भरोसा है। शादी के मीनू में भी रहती हैं दूसरी सब्जीयों के साथ,तवा सब्जी के नाम से। टिफिन में देने के लिए भी यह पोप्यूलर सब्जी है।बच्चे भी इसे पसंद करते हैं।

बहुत हो गया अब खाकर इस का मज़ा लो।

किरीटनेचुरल

9-6-18

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डा.परमार,आंखों के सर्जन। भचाऊ कच्छ गुजरात। मृदुल स्वभाव। कुछ महीनों में ही उनसे पहचान हो गई।10 साल की कयी अच्छी यादें हैं। मुझे उन दिनों अंग्रेजी उपन्यास पढ़ने का शौक था। भचाऊ जैसी छोटी जगह पर कोई मिला।वे अहमदाबाद से पुराने उपन्यास थैला भरके लाते थे। पढ़ते थे और मुझे भी पढ़ने के लिए देते थे। उन्होंने ही मुझे फटे- पुराने उपन्यास पढना सिखाया।तब तक मैं नये महंगे खरीद कर पढ़ता था। मुझे इंडिया टूडे, रीडर्स डाइजेस्ट, फेमिना, खरीदने का शौक था जो मैं उन्हें देता था। पिताजी और पत्नी का इलाज भी उनसे करवाया था। अच्छे डाक्टर थे। प्रसिद्ध थे। जगन्नाथ भाई, वकील,डा.आचार्या, जेठालाल भाई, आदि शाम को मांडवी चौक में जगन्नाथ भाई की दुकान पर मिलते थे और अलग 2 विषयों पर चर्चा करते थे। बहुत ही यादगार दिन थे वो।